मीरा चरित (भाग 4)
|| श्रीकृष्ण ||
|| मीरा चरित ||
(4)
क्रमशः से आगे ..........
मीरा के यूँ अचेत होने से माँ कुछ व्याकुल सी हो गई और उन्होंने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए सब बात रतन सिंह जी को बताई ।
वीर कुंवरी चाहती थी कि मीरा महल में और राजकुमारियों की तरह शस्त्राभ्यास , राजनीति , घुड़सवारी और घर गृहस्थी के कार्य सीखे ताकि वह ससुराल में जा कर प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सके । पर इधर दूदा जी के संरक्षण में मीरा ने योग और संगीत की शिक्षा प्रारम्भ कर दी । मीरा का झुकाव ठाकुर पूजा में दिन प्रतिदिन बढ़ता देख माँ को स्वाभाविक चिन्ता होती ।
मीरा को पूजा और शिक्षा के बाद जितना अवकाश मिलता वह दूदाजी के साथ बैठ श्री गदाधर जोशी जी से श्रीमद् भागवत कथा सुनती ।आने वाले प्रत्येक संत का सत्संग लाभ लेती ।उसके भक्तियुक्त प्रश्नों को सुनकर सब मीरा की प्रतिभा से आश्चर्यचकित हो जाते । माँ को मीरा का यूँ संतो से बात करना उनके समक्ष भजन गाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था पर दूदाजी जी की लाडली मीरा को कुछ कहते भी नहीं बनता था ।
दूदाजी की छत्रछाया में मीरा की भक्ति बढ़ने लगी ।वृंदावन से पधारे बाबा बिहारीदास जी से मीरा की नियमित संगीत शिक्षा भी प्रारम्भ हो गई ।रनिवास में यही चर्चा होती- अहा , इस रूप गुण की खान को अन्नदाता हुकम न जाने क्यों साधु बना रहे है ?
एक दिन मीरा दूदाजी से बोली ," बाबोसा मुझे अपने गिरधर के लिए अलग कक्ष चाहिए , माँ के महल में छोरे - छोरी मिलकर उनसे मिलकर छेड़छाड़ करते है ।
दूदाजी ने अपनी लाडली के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए कहा ," हाँ बेटी क्यों नहीं ।"
और दूसरे ही दिन महल के परकोटे में लगी फुलवारी के मध्य गिरधर गोपाल के लिए मन्दिर का निर्माण आरम्भ हो गया ।
क्रमशः ...........
🙏🏼🌹 राधे राधे 🌹🙏🏼