मीरा चरित भाग 14 से भाग 20 तक

|| श्रीकृष्ण ||
|| मीरा चरित ||
(14)
क्रमशः से आगे.............

कल गुरु पूर्णिमा है ।मीरा श्याम कुन्ज में बैठी हुई सोच रही है, सदा से इस दिन गुरुपूजा करते आ रहे है । शास्त्र कहते है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता , वही परमतत्व का दाता है ।तब मेरे गुरु कौन ?

वह एकदम से उठकर दूदाजी के पास चल पड़ी ।वहाँ जयमल ,(वीरमदेव जी के पुत्र और मीरा के छोटे भाई ) दूदाजी से तलवारबाज़ी के दाव पैच सीख रहे थे ।मीरा दूदाजी को प्रणाम कर भाई की बात खत्म होने की प्रतीक्षा करते बैठ गई ।पर जयमल तो युद्ध, घोड़ों और धनुष तलवार के बारे में वीरता से दूदाजी से कितने ही प्रश्न पूछते जा रहे थे ।

मीरा ने भाई को टोकते हुए कहा," बाबोसा से मुझे कुछ पूछना था ।पूछ लूँ तो फिर भाई ,आप बाबोसा के साथ पुनः महाभारत प्रारम्भ कर लेना ।तलवार जितने तो आप हो नहीं अभी और युद्ध पर जाने की बातें कर रहे हो ।"
जयमल और दूदाजी दोनों मीरा की बात पर हँस पड़े ।

मीरा अपनी जिज्ञासा रखती हुई बोली ," बाबोसा !शास्त्र और संत कहते है कि गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता ।मेरे गुरु कौन है?"
" है तो सही, बाबा बिहारी दास और योगी निवृतिनाथ जी ।" जयमल ने कहा ।
" नहीं बेटा ! वे दोनों मीरा के शिक्षा गुरू है -एक संगीत के और दूसरे योग के , पर वे दीक्षा गुरू नहीं ।सुनो बेटी ! इस क्षेत्र में अधिकारी कभी भी वंचित नहीं रहता ।तृषित यदि स्वयं सरोवर के पास नहीं पहुँच पाता तो सरोवर ही प्यासे के समीप पहुँच जाता है ।बेटी ! तुम अपने गिरधर से प्रार्थना करो ,वे उचित प्रबन्ध कर देंगें ।"
" गुरु होना आवश्यक तो है न बाबा ?"
"आवश्यकता होने पर अवश्य ही आवश्यक है ।गुरु तो एक ऐसी जलता हुआ दिया है जो तुम्हारा भी अध्यात्मिक पथ प्रकाशित कर देते है ।फिर गुरु के होने से उनकी कृपा तुम्हारे साथ जुड़ जाती है।------यों तो तुम्हारे गिरधर स्वयं जगदगुरू है ।"
" वो तो है बाबोसा पर मन्त्र ?" 
उसके इस प्रश्न पर दूदाजी हँस दिये, "भगवान का प्रत्येक नाम मन्त्र है बेटी ।उनका नाम उनसे भी अधिक शक्तिशाली है, यही तो अभी तक सुनते आये हैं ।"

" वह कानों को प्रिय लगता है बाबोसा ! पर आँखें तो प्यासी रह जाती है ।"अनायास ही मीरा के मुख से निकल पड़ा पर बात का मर्म समझ में आते ही सकुचा गई और उसने दूदाजी की ओर पीठ फेर ली ।

"उसमें( भगवान के नाम में) इतनी शक्ति है किमें) आँखों की प्यास बुझाने वाले को भी खींच लाये ।"उसकी पीठ की ओर देखते हुये मुस्कुरा कर दूदाजी ने कहा ।
" जाऊँ बाबोसा ? " मीरा ने सकुचा कर पूछा ।
"हाँ , जाओ बेटी ।"

जयमल ने आश्चर्य से पूछा ," बाबोसा ! जीजा ने यह क्या कहा और उन्हें लाज क्यों आई ?"
" वह तुम्हारे क्षेत्र की बात नहीं है बेटा ।बात इतनी सी है कि भगवान के नाम में भगवान से भी अधिक शक्ति है और उस शक्ति का लाभ नाम लेने वाले को मिलता है ।"

मीरा श्याम कुन्ज लौट आई और ठाकुर से निवेदन कर बोली ," कल गुरु पूर्णिमा है, अतः कल जो भी संत हमारे घर पधारेगें , वे ही प्रभु आपके द्वारा निर्धारित गुरू होंगे।"

मीरा ने अपना तानपुरा उठाया और गाने लगी...........

🌿मोहि लागी लगन गुरु चरणन की ।
चरण बिना मोहे कछु नहिं भावे, 
जग माया सब सपनन की ॥
भवसागर सब सूख गयो है ,
फिकर नहीं मोही तरनन की ॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,
आस लगी गुरु सरनन की ॥
मोहे लागी लगन गुरू चरणन की🌿

क्रमशः ............

|| मीरा चरित ||
(15)
क्रमशः से आगे .......................

रात्रि में मीरा ने स्वप्न देखा कि महाराज युधिष्ठिर की सभा में प्रश्न उठा कि प्रथम पूज्य , सर्वश्रेष्ठ कौन है जिसका प्रथम पूजन किया जाय ।चारों तरफ़ से एक ही निर्णय हुआ -" कृष्णं वंदे जगदगुरूम ।" युधिष्ठिर ने सपरिवार अतिशय विनम्रता से श्रीकृष्ण के चरणों को धोया ।

सुबह हुई तो मीरा सोचने लगी, "गिरधर वे सब सत्य कह रहे थे कि तुम्हीं ही तो सच्चे गुरु हो ।आज तुम जिस संत के रूप में पधारोगे , मैं उनको ही अपना गुरु मान लूँगी ।
आज गुरु पूर्णिमा है ।मीरा ने गिरधर गोपाल को नया श्रंगार धारण कराया , गुरु भाव से उनकी पूजा की और गाने लगी........

🌿म्हाँरा सतगुरू बेगा आजो जी ।
म्हारे सुख री सीर बहाजो जी॥
................................
🌿अरज करै मीरा दासी जी ।
गुरु पद रज की प्यासी जी ॥

सारा दिन बीत गया ।सायंकाल अकस्मात विचरते हुए काशी के संत रैदास जी का मेड़ते में पधारना हुआ ।दूदाजी बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने शक्ति भर उनका सत्कार किया और आवास प्रदान किया ।मीरा को बुलाकर उनका परिचय दिया ।मीरा प्रसन्न हो उठी ।मन ही मन उन्हें गुरुवत बुद्धि से प्रणाम किया ।उन्होंने भी कृपा दृष्टि से उसे निहारते हुये आशीर्वाद दिया -"प्रभु चरणों में दिनानुदिन तुम्हारी प्रीति बढ़ती रहे ।"

आशीर्वाद सुनकर मीरा के नेत्र भर आये ।उसने कृतज्ञता से उनकी ओर देखा ।उस असाधारण निर्मल दृष्टि और मुख के भाव देख कर संत सब समझ गये ।उसके जाने के पश्चात उन्होंने दूदाजी से मीरा के बारे में पूछा ।सब सुनकर वे बोले,  "राजन ! तुम्हारे पुण्योदय से घर में गंगा आई है ।अवगाहन कर लो जी भरकर ।सबके सब तर जाओगे ।"

रात को राजमहल के सामने वाले चौगान में सार्वजनिक सत्संग समारोह हुआ ।रैदास जी के उपदेश-भजन हुए ।दूदाजी के आग्रह से मीरा ने भी भजन गाकर उन्हें सुनाये ।

🌿लागी मोहि राम खुमारी हो ।
रिमझिम बरसै मेहरा भीजै तन सारी हो ।
चहुँ दिस दमकै दामणी ,गरजै घन भारी हो ॥

🌿सतगुरू भेद बताईया खोली भरम किवारी हो ।
सब घर दीसै आतमा सब ही सूँ न्यारी हो॥

🌿दीपक जोऊँ ग्यान का चढ़ूँ अगम अटारी हो ।
मीरा दासी राम की इमरत बलिहारी हो॥

मीरा के संगीत - ज्ञान , पद रचना और स्वर माधुरी से संत बड़े प्रसन्न हुये ।उन्होंने पूछा -" तुम्हारे गुरु कौन है बेटी ?"

" कल मैंने प्रभु के सामने निवेदन किया था कि मेरे लिए गुरु भेजें और फिर निश्चय किया कि आज गुरु पूर्णिमा है , अतः जो भी संत आज पधारेगें , वे ही प्रभु द्वारा निर्धारित गुरु होंगे ।कृपा कर इस अज्ञानी को शिष्या के रूप में स्वीकार करें !" मीरा ने रैदास जी के चरणों में गिर प्रणाम किया तो उसकी आँखों से आँसू निकल उनके चरणों पर गिर पड़े ।

क्रमशः ...............

||मीरा चरित ||
(16)
क्रमशः से आगे.............

मीरा ने जब इतनी दैन्यता और क्रन्दन करते हुए रैदास जी से उसे शिष्या स्वीकार करने की प्रार्थना की तो वे भी भावुक हो उठे । सन्त ने मीरा के सिर पर हाथ रखते हुए कहा," बेटी ! तुम्हें कुछ अधिक कहने- सुनने की आवश्यकता नहीं है ।नाम ही निसेनी (सीढ़ी ) है और लगन ही प्रयास , अगर दोनों ही बढ़ते जायें तो अगम अटारी घट में प्रकाशित हो जायेगी ।इन्हीं के सहारे उसमें पहुँच अमृतपान कर लोगी । समय जैसा भी आये, पाँव पीछे न हटे , फिर तो बेड़ा पार है ।" इतना कह वह स्नेह से मुस्कुरा दिये।

" मुझे कुछ प्रसाद देने की कृपा करें ।" मीरा ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की ।
सन्त ने एक क्षण सोचा ।फिर गले से अपनी जप- माला और इकतारा मीरा के फैले हाथों पर रख दिये ।मीरा ने उन्हें सिर से लगाया , माला गले में पहन ली और इकतारे के तार पर पर उँगली रखकर उसने रैदास जी की ओर देखा ।उसके मन की बात समझ कर उन्होंने इकतारा मीरा के हाथ से लिया और बजाते हुये गाने लगे..........

🌿प्रभुजी ,तुम चन्दन हम पानी ।
जाकी अँग अँग बास समानी ॥
🌿प्रभुजी ,तुम घन बन हम मोरा ।
जैसे चितवत चन्द्र चकोरा ॥
🌿प्रभुजी , तुम दीपक हम बाती ।
जाकी जोत बरे दिन राती ॥
🌿प्रभुजी , तुम मोती हम धागा ।
जैसे सोनहि मिलत सुहागा ॥
🌿प्रभुजी ,तुम स्वामी हम दासा ।
ऐसी भगति करे रैदासा ॥

रैदास जी ने भजन पूरा कर अपना इकतारा पुनः मीरा को पकड़ा दिया, जो उसने जीवन पर्यन्त गुरु के आशीर्वाद की तरह अपने साथ सहेज कर रखा ।गुरु जी के इंगित करने पर मीरा ने उसे बजाते हुए गायन प्रारम्भ किया .....

🌿 कोई कछु कहे मन लागा ।
ऐसी प्रीत लगी मनमोहन ,
ज्युँ सोने में सुहागा ।
🌿 जनम जनम का सोया मनुवा ,
सतगुरू सबद सुन जागा ।
🌿मात- पिता सुत कुटुम्ब कबीला,
टूट गया ज्यूँ तागा ।
🌿मीरा के प्रभु गिरधर नागर,
भाग हमारा जागा ।
कोई कुछ कहे मन लागा ॥

चारों ओर दिव्य आनन्द सा छा गया ।उपस्थित सब जन एक निर्मल आनन्द धारा में अवगाहन कर रहे थे ।मीरा ने पुनः आलाप की तान ली......

🌿पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो ।
🌿वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू ,
किरपा कर अपनायो ॥
🌿जनम जनम की पूँजी पाई ,
जग में सभी खुवायो (खो दिया)॥
🌿खरच न खूटे , चोर न लूटे ,
दिन दिन बढ़त सवायो ॥
🌿सत की नाव खेवटिया सतगुरू,
भवसागर तैरायो ॥
🌿मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,
हरख हरख जस गायो ॥
🌿पायो जी मैंने राम रत्न धन पायो ॥

रैदास जी मीरा का भजन सुनकर अत्यंत भावविभोर हो उठे ।वे मीरा सी शिष्या पाकर स्वयं को धन्य मान रहे थे ।उन्होंने उसे कोटिश आशीर्वाद दिया ।दूदाजी भी संत की कृपा पाकर कृत कृत्य हुये ।

संत रैदास जी दो दिन मेड़ता में रहे ।उनके जाने से मीरा को सूना सूना लगा ।वह सोचने लगी कि," दो दिन सत्संग का कैसा आनन्द रहा ? सत्संग में बीतने वाला समय ही सार्थक है ।"

क्रमशः ...............

|| मीरा चरित ||
(17)
क्रमशः से आगे ..............

प्रतिदिन की तरह मीरा पूजा समपन्न कर श्याम कुन्ज में बैठी भजन गा रही थी । माँ , वीरकुँ वरी जी आई तो ठाकुर जी को प्रणाम करके बैठ गई ।मीरा ने भजन पूरा होने पर तानपुरा रखते समय माँ को देखा तो चरणों में सिर रखकर प्रणाम किया ।माँ ने जब बेटी का अश्रुसिक्त मुख देखा तो पीठ पर स्नेह से हाथ रखते हुए बोली ," मीरा ! क्या भजन गा गा कर ही आयु पूरी करनी है बेटी ? जहाँ विवाह होगा , वह लोग क्या भजन सुनने के लिए तुझे ले जायेंगे ?"

"जिसका ससुराल और पीहर एक ही ठौर हो भाबू ! उसे चिन्ता करने की क्या आवश्यकता है ?"
" मैं समझी नहीं बेटी !"माँ ने कहा ।
" महलों में मेरा पीहर है और श्याम कुन्ज ससुराल ।" मीरा ने सरलता से कहा।
" तुझे कब समझ आयेगी बेटी ! कुछ तो जगत व्यवहार सीख ।बड़े बड़े घरों में तुम्हारे सम्बन्ध की चर्चा चल रही है ।इधर रनिवास में हम लोगों का चिन्ता के मारे बुरा हाल है ।यह रात दिन गाना -बजाना ,पूजा पाठ और रोना धोना इन सबसे संसार नहीं चलता ।ससुराल में सास ननद का मन रखना पड़ता है, पति को परमेश्वर मानकर उसकी सेवा टहल करनी पड़ती है ।मीरा ! सारा परिवार तुम्हारे लिए चिन्तित है ।"
"भाबू ! पति परमेश्वर है, इस बात को तो आप सबके व्यवहार को देखकर मैं समझ गई हूँ ।ये गिरधर गोपाल मेरे पति ही तो हैं और मैं इन्हीं की सेवा में लगी रहती हूँ, फिर आप ऐसा क्यों फरमाती है ?"

" अरे पागल लड़की ! पीतल की मूरत भी क्या किसी का पति हो सकती है ? मैं तो थक गई हूँ ।भगवान ने एक बेटी दी वह भी आधी पागल ।"
"माँ ! आप क्यों अपना जी जलाती है सोच सोच कर ।बाबोसा ने मुझे बताया है कि मेरा विवाह हो गया है ।अब दूसरा विवाह नहीं होगा । 

" कब हुआ तेरा विवाह ? हमने न देखा , न सुना ।कब हल्दी चढ़ी , कब बारात आई, कब विवाह -विदाई हुई ? न ही किसने कन्यादान किया ? यह तुझे बाबोसा ने ही सिर चढ़ाया है ।"

"यदि आपको लगता है कि विवाह नहीं हुआ तो अभी कर दीजिए ।न तो वर को कहीं से आना है न कन्या को ।दोनों आपके सम्मुख है दूसरी तैयारी ये लोग कर देंगी ।दो जनी जाकर पुरोहित जी और कुवँर सा (पिता जी ) को बुला लायेगीं ।"मीरा ने कहा ।
"हे भगवान ! अब मैं क्या करूँ ? रनिवास में सब मुझे ही दोषी ठहराते है कि बेटी को समझाती नहीं और यहाँ यह हाल है कि इस लड़की के मस्तिष्क में मेरी एक बात भी नहीं घुसती ।"

फिर थोड़ा शांत हो कर प्यार से वीरकुवंरी जी मनाते हुए कहने लगी ," बेटा नारी का सच्चा गुरु पति होता है ।"
"पर भाबू ! आप मुझे गिरधर से विमुख क्यों करती है ? ये तो आपके सुझाये हुये मेरे पति है न ?"

"अहा ! जिस विधाता ने इतना सुन्दर रूप दिया उसे इतनी भी बुद्धि नहीं दी कि यह सजीव मनुष्य में और पीतल की मूरत में अन्तर ही नहीं समझती ।वह तो उस समय तू ज़िद कर रही थी, इसलिए तुझे बहलाने के लिए कह दिया था ।"

"आप ही तो कहती है कि कच्ची हाँडी पर खींची रेखा मिटती नहीं और पकी हाँडी पर गारा ठहरता नहीं ।उस समय मेरे कच्ची बुद्धि में बिठा दिया कि गिरधर तेरे पति है और अब दस वर्ष की होने पर कहती हैं कि वह बात तो बहलाने के लिया कही थी ।भाबू ! पर सब संत यही कहते है कि मनुष्य शरीर भगवत्प्राप्ति के लिए मिला है इसे व्यर्थ कार्यों में नहीं लगाना चाहिए ।"

वीरकुवंरी जी उठकर चल दी । सोचती जाती थी, ये शास्त्र ही आज बैरी हो गये- मेरी सुकुमार बेटी को यह बाबाओं वाला पथ कैसे पकड़ा दिया । उनकी आँखों में चिन्ता से आँसू आ गये ।

मीरा माँ की बाते सोचते हुए कुछ देर एकटक गिरधर की ओर निहारती रही ।फिर रैदास जी का इकतारा उठाया और गाने लगी .......

🌿मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई ॥
🌿कोई कहे कालो , कोई कहे गोरो
लियो है मैं आँख्याँ खोल ।
कोई कहे हलको, कोई कहे भारो
लियो है तराजू तोल ॥
🌿कोई कहे छाने, कोई कहे चवड़े
लियो है बंजता ढोल ।
तनका गहणा मैं सब कुछ दीनाँ
दियो है बाजूबँद खोल ॥
🌿मीराँ के प्रभु गिरधर नागर,
पूरब जनम को है कौल॥

क्रमशः ..................

|| मीरा चरित ||
(18)

क्रमशः से आगे................

यों तो मेड़ते के रनिवास में गिरिजा जी , वीरमदेव जी ( दूदा जी के सबसे बड़े बेटे ) की तीसरी पत्नी थी , किन्तु पटरानी वही थी । उनका ऐश्वर्य देखते ही बनता था । पीहर से उनके विवाह के समय में पचासों दास दासियाँ साथ आये थे और परम प्रतापी हिन्दु सूर्य महाराणा साँगा की लाडली बहन का वैभव एवं सम्मान यहाँ सबसे अधिक था । पूरे रनिवास में उनकी उदार व्यवहारिकता में भी उनका ऐश्वर्य उपस्थित रहता।

मीरा उनकी बहुत दुलारी बेटी थी ।ये उसकी सुन्दरता , सरलता पर जैसे न्यौछावर थी। बस, उन्हें उसका आठों प्रहर ठाकुर जी से चिपके रहना नहीं सुहाता था । किसी दिन त्योहार पर भी मीरा को श्याम कुन्ज से पकड़ कर लाना पड़ता । मीरा को बाँधने के तो दो ही पाश थे , भक्तभगवत चर्चा अथवा वीर गाथा । जब भी गिरिजा जी मीरा को पाती , उसे बिठाकर अपने पूर्वजों की शौर्य गाथा सुनाती ।मीरा को वीर और भक्तिमय चरित्र रूचिकर लगते ।

रात ठाकुर जी को शयन करा कर मीरा उठ ही रही थी कि गिरिजा जी की दासी ने आकर संदेश दिया, "बड़े कुँवरसा आपको बुलवा रहे है ।"
"क्यों अभी ही ?" मीरा ने चकित हो पूछा और साथ ही चल दी ।

उसने महल में जाकर देखा कि उसके बड़े पिताजी और बड़ी माँ दोनों प्रसन्न चित बैठे थे ।मीरा भी उन्हें प्रणाम कर बैठ गई ।

" मीरा तुम्हें अपनी यह माँ कैसी लगती है ?" वीरमदेव जी ने मुस्कुरा कर पूछा ।
" माँ तो माँ होती है ।माँ कभी बुरी नहीं होती ।" मीरा ने मुस्कुरा कर कहा ।
" और इनके पीहर का वंश , वह कैसा है ?"

" यों तो इस विषय में मुझसे अधिक आप जानते होंगे ।पर जितना मुझे पता है तो हिन्दु सूर्य, मेवाड़ का वंश संसार में वीरता , त्याग , कर्तव्य पालन और भक्ति में सर्वोपरि है । मेरी समझ में तो बाव जी हुकम ! आरम्भ में सभी वंश श्रेष्ठ ही होते है उसके किसी वंशज के दुष्कर्म के कारण अथवा हल्की ज़गह विवाह -सम्बन्ध से लघुता आ जाती है ।"

" बेटी , तुम्हारे इन माँ के भतीजे है भोजराज ।रूप और गुणों की खान........."
" मैंने सुना है ।" मीरा ने बीच में ही कहा ।
" वंश और पात्र में कहीं कोई कमी नहीं है ।गिरिजा जी तुझे अपने भतीजे की बहू बनाना चाहती है ।"
" बाव जी हुकम !" मीरा ने सिर झुका लिया, " ये बातें बच्चों से तो करने की नहीं है ।"

" जानता हूँ बेटी ! पर दादा हुकम ने फरमाया है कि मेरे जीवित रहते मीराका विवाह नहीं होगा ।बेटी बापके घरमें नहीं खटती बेटा ! यदि तुम मान जाओ तो दाता हुकमको मनाना सरल हो जायेगा ।बादमें ऐसा घर-वर शायद न मिले ।मुझे भी तुमसे ऐसी बातें करना अच्छा नहीं लग रहा है, किन्तु कठिनाई ही ऐसी आन पड़ी है तुम्हारी माताएँ कहती हैं कि हमसे ऐसी बात कहते नहीं बनती । पहले योग - भक्ति सिखाई अब विवाह के लिये पूछ रहे हैं ।इसी कारण स्वयं पूछ रहा हूँ बेटी ।"

'बावजी हुकम !' रूंधे कंठसे मीरा केवल सम्बोधन ही कर पायी ।ढलनेको आतुर आंसुओंसे भरी बड़ी -बडी आंखें उठाकर उसने अपने बड़े पिताकी और देखा ।ह्रदयके आवेगको अदम्य पाकर वह एकदमसे उठकर माता-पिता को प्रणाम किये बिना ही दौड़ती हुई कक्षसे बाहर निकल गयी ।

वीरमदेवजीनें देखा - मीराके रक्तविहीन मुखपर व्याघ्र के पंजेमें फँसी गायके समान भय, विवशता और निराशाके भाव और मरते पशुके आर्तनाद सा विकल स्वर 'बावजी हुकम' कानोंमे पड़ा तो वे विचलित हो उठे ।वे रणमें प्रलयंकर बन कर शवों से धरती पाट सकते हैं ; निशस्त्र व्याघ्र से लड़ सकते हैं किन्तु अपनी पुत्री की आँखों में विवशता नहीं देखसके ।उन्हें तो ज्ञात ही नहीं हुआ कि मीरा " बाव जी हुकम " कहते कब कक्ष से बाहर चली गई ।

क्रमशः ...............

|| मीरा चरित ||
(19)
क्रमशः से आगे............

बड़े पिताजी और बड़ी माँ के यूँ मीरा से सीधे सीधे ही मेवाड़ के राजकुवंर भोजराज से विवाह के प्रस्ताव पर मीरा का ह्रदय विवशता से क्रन्दन कर उठा ।वह शीघ्रता पूर्वक कक्ष से बाहर आ सीढ़ियाँ उतरती चली गई ।वह नहीं चाहती थी कि कोई भी उसकी आँखों में आँसू भी देखे ।जिसने उसे दौड़ते हुए देखा , चकित रह गया , ब्लकि पुकारा भी ,पर मीरा ने किसी की बात का उत्तर नहीं दिया ।

मीरा अपने ह्रदय के भावों को बाँधे अपने कक्ष में गई और धम्म से पलंग पर औंधी गिर पड़ी ।ह्रदय का बाँध तोड़ कर रूदन उमड़ पड़ा - " यह क्या हो रहा है मेरे सर्वसमर्थ स्वामी ! अपनी पत्नी को दूसरे के घर देने अथवा जाने की बात तो साधारण- से-साधारण , कायर-से- कायर राजपूत भी नहीं कर सकता । शायद तुमने मुझे अपनी पत्नी स्वीकार ही नहीं किया , अन्यथा ................... । हे गिरिधर ! यदि तुम अल्पशक्ति होते तो मैं तुम्हें दोष नहीं देती ।तब तो यही सत्य है न कि तुमने मुझे अपना माना ही नहीं ........ ।न किया हो, स्वतन्त्र हो तुम ।किसी का बन्धन तो नहीं है तुम पर ।"

हे प्राणनाथ ! पर मैंने तो तुम्हें अपना पति माना है........ मैं कैसे अब दूसरा पति वर लूँ ? और कुछ न सही ,शरणागत के सम्बन्ध से ही रक्षा करो........ रक्षा करो ।अरे ऐसा तो निर्बल - से - निर्बल राजपूत भी नहीं होने देता ।यदि कोई सुन भी लेता है कि अमुक कुमारी ने उसे वरण किया है तो प्राणप्रण से वह उसे बचाने का , अपने यही लाने का प्रयत्न करता है ।तुम्हारी शक्ति तो अनन्त है, तुम तो भक्त - भयहारी हो । हे प्रभु ! तुम तो करूणावरूणालय हो, शरणागतवत्सल हो, पतितपावन हो, दीनबन्धु हो.............. कहाँ तक गिनाऊँ............... ।इतनी अनीति मत करो मोहन .......मत करो ।मेरे तो तुम्हीं एकमात्र आश्रय हो.. रक्षक हो.......तुम्हीं सर्वस्व हो, मैं अपनी रक्षा के लिये तुम्हें छोड़ किसे पुकारूँ......किसे पुकारूँ......किसे .....?

🌿जो तुम तोड़ो पिया ,मैं नहीं तोड़ू
तोसों प्रीत तोड़ कृष्ण ,कौन संग जोड़ू॥

🌿तुम भये तरूवर, मैं भई पंखिया 
तुम भये सरोवर, मैं तेरी मछिया
तुम भये गिरिवर, मैं भई चारा 
तुम भये चन्दा, मैं भई चकोरा ।

🌿तुम भये मोती प्रभु हम भये धागा
तुम भये सोना हम भये सुहागा 

🌿मीरा कहे प्रभु बृज के वासी
तुम मेरे ठाकुर मुझे तेरी दासी ।
जो तुम तोड़ो पिया , मैं नहीं तोड़ू ।
तोसो प्रीत तोड़ कृष्ण ,कौन संग जोड़ू ॥

क्रमशः ........

|| मीरा चरित ||
(20)
क्रमशः से आगे ...............

राव दूदाजी अब अस्वस्थ रहने लगे थे ।अपना अंत समय समीप जानकर उनकी ममता मीरा पर अधिक बढ़ गयी थी ।उसके मुख से भजन सुने बिना उन्हें दिन सूना लगता ।मीरा भी समय मिलते ही दूदाजी के पास जा बैठती ।उनके साथ भगवत चर्चा करती ।अपने और अन्य संतो के रचे हुए पद सुनाती ।

ऐसे ही उस दिन मीरा गिरधर की सेवा पूजा कर बैठी ही थी कि गंगा ने बताया कि दूदाजी ने आपको याद फरमाया है ।मीरा ने जाकर देखा तो उनके पलंग के पास पाँचों पुत्र , दीवान जी, राजपुरोहित और राजवैद्यजी सब वहीं थे ।

सहसा आँखें खोल कर दूदाजी ने पुकारा ," मीरा....।
" जी मैं हाजिर हूँ बाबोसा ।" मीरा उनके पास आ बोली ।
"मीरा भजन गाओ बेटी !"

मीरा ने ठाकुर जी की भक्त वत्सलता का एक पद गाया ।पद पूरा होने पर दूदाजी ने चारभुजानाथ के दर्शन की इच्छा प्रकट की ।तुरन्त पालकी मंगवाई गई ।उन्हें पालकी में पौढ़ा कर चारों पुत्र कहार बने ।वीरमदेव जी छत्र लेकर पिताजी के साथ चले ।दो घड़ी तक दर्शन करते रहे ।पुजारी जी ने चरणामृत , तुलसी माला और प्रसाद दिया ।वहाँ से लौटते श्याम कुन्ज में गिरधर गोपाल के दर्शन किए और मन ही मन कहा ," अब चल रहा हूँ स्वामी ! अपनी मीरा को संभाल लेना प्रभु ।"

महल में वापिस लौट कर थोड़ी देर आँखें मूंद कर लेटे रहे ।फिर अपनी तलवार वीरमदेव जी को देते हुये कहा," प्रजा की रक्षा का और राज्य के संचालन का पूर्ण दायित्व तुम्हारे सबल स्कन्ध वाहन करे ।" मीरा और जयमल को पास बुला कर आशीर्वाद देते हुये कहने लगे," प्रभु कृपा से, तुम दोनों के शौर्य व भक्ति से मेड़तिया कुल का यश संसार में गाया जायेगा ।भारत की भक्त माल में तुम दोनों का सुयश पढ़ सुनकर लोग भक्ति और शौर्य पथ पर चलने का उत्साह पायेंगे ।उनकी आँखों से मानों आशीर्वाद स्वरूप आँसू झरने लगे ।

वीरमदेव जी ने दूदाजी से विनम्रता से पूछा ," आपकी कोई इच्छा हो तो आज्ञा दें ।"
"बेटा ! सारा जीवन संत सेवा का सौभाग्य मिलता रहा ।अब संसार छोड़ते समय बस संत दर्शन की ही लालसा है ।पर यह तो प्रभु के हाथ की बात है ।"
वीरमदेव जी ने उसी समय पुष्कर की ओर सवार दौड़ाये संत की खोज में ।मीरा आज्ञा पाकर गाने लगी ......

🌿नहीं ऐसो जनम बारम्बार ।
क्या जानूँ कुछ पुण्य प्रगटे मानुसा अवतार॥

🌿बढ़त पल पल घटत दिन दिन जात न लागे बार।
बिरछ के ज्यों पात टूटे लगे नहिं पुनि डार॥

🌿भवसागर अति जोर कहिये विषम ऊंडी धार।
राम नाम का बाँध बेड़ा उतर परले पार॥

🌿ज्ञान चौसर मँडी चौहटे सुरत पासा सार।
या दुनिया में रची बाजी जीत भावै हार॥

🌿साधु संत मंहत ज्ञानी चलत करत पुकार।
दास मीरा लाल गिरधर जीवणा दिन चार ॥

पद पूरा करके मीरा ने अभी तानपुरा रखा ही था कि द्वारपाल ने आकर निवेदन किया - " अन्नदाता ! दक्षिण से श्री चैतन्यदास नाम के संत पधारे है ।"
उसकी बात सुनने ही दूदाजी एकदम चैतन्य हो गये ।मानो बुझते हुए दीपक की लौ भभक उठी हो ।आँख खोल कर उन्होंने संत को सम्मान से पधराने का संकेत किया ।सब राजपुरोहित जी के साथ उनके स्वागत के लिया बढ़े ही थे कि द्वार पर गम्भीर और मधुर स्वर सुनाई दिया ..... राधेश्याम ........!

क्रमशः .............

🙏🏼🌹 राधे राधे 🌹🙏🏼
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✍🏽 WhatsApp या Facebook पर मीरा चरित का यह जो प्रसंग आता है,  भाग 1 से लेकर भाग 123 तक, यह संक्षेप में है। जो मुख्य रूप से पुस्तक से लेकर लिखा गया है। लेकिन पुस्तक में और विस्तार से लिखा हुआ है और भी बहुत सारे प्रसंग पुस्तक में आपको मिलेंगे, जो कि बहुत ही रोचक है, भावुक कर देने वाला प्रसंग पुस्तक में आपको मिलेंगे। इसलिए निवेदन है कि मीरा चरित पुस्तक जरूर पढ़ें। और यदि आप  पुस्तक मंगवाना चाहते हैं तो आप इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।

श्री राधे...

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