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मीरा चरित (भाग 8)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (8) क्रमशः से आगे ........ 🌿 मीरा की भक्ति और भजन में बढ़ती रूचि देखकर रनिवास में चिन्ता व्याप्त होने लगी । एक दिन वीरमदेव जी (मीरा के सबसे बड़े काका ) को उनकी पत्नी श्री गिरिजा जी ने कहा ," मीरा दस वर्ष की हो गई है ,इसकी सगाई - सम्बन्ध की चिन्ता नहीं करते आप ? " वीरमदेव जी बोले ," चिन्ता तो होती है पर मीरा का व्यक्तित्व , प्रतिभा और रूचि असधारण है , फिर बाबोसा मीरा के ब्याह के बारे में कैसा सोचते है, पूछना पड़ेगा ।" 🌿 " ,बेटी की रूचि साधारण हो याँ असधारण - पर विवाह तो करना ही पड़ेगा " बड़ी माँ ने कहा । " पर मीरा के योग्य कोई पात्र ध्यान में हो तो ही मैं अन्नदाता हुक्म से बात करूँ ।" 🌿" एक पात्र तो मेरे ध्यान में है ।मेवाड़ के महाराज कुँवर और मेरे भतीजे भोजराज।" "क्या कहती हो , हँसी तो नहीं कर रही ? अगर ऐसा हो जाये तो हमारी बेटी के भाग्य खुल जाये ।वैसे मीरा है भी उसी घर के योग्य ।" प्रसन्न हो वीरमदेव जी ने कहा । गिरिजा जी ने अपनी तरफ़ से पूर्ण प्रयत्न करने का आश्वासन दिया । 🌿 मीरा...

मीरा चरित (भाग 7)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (7) क्रमशः से आगे ......... 🌿 मीरा अभी भी तानपुरा ले गिरधर के सम्मुख श्याम कुन्ज में ही बैठी थी । वह दीर्घ कज़रारे नेत्र , वह मुस्कान , उनके विग्रह की मदमाती सुगन्ध और वह रसमय वाणी सब मीरा के स्मृति पटल पर बार बार उजागर हो रही थी । मेरे नयना निपट बंक छवि अटके । देखत रूप मदनमोहन को  पियत पीयूख न भटके । बारिज भवाँ अलक टेढ़ी मनो अति सुगन्ध रस अटके॥ टेढ़ी कटि टेढ़ी कर मुरली टेढ़ी पाग लर लटके । मीरा प्रभु के रूप लुभानी गिरधर नागर नटके ॥ 🌿 मीरा को प्रसन्न देखकर मिथुला समीप आई और घुटनों के बल बैठकर धीमे स्वर में बोली - " जीमण पधराऊँ बाईसा ( भोजन लाऊँ )? " " अहा मिथुला ! अभी थोड़ा ठहर जा "। मीरा के ह्रदय पर वही छवि बार बार उबर आती थी । फिर उसकी उंगलियों के स्पर्श से तानपुरे के तार झंकृत हो उठे......... नन्दनन्दन दिठ (दिख) पड़िया माई, साँ.......वरो........ साँ......वरो । नन्दनन्दन दिठ पड़िया माई , छाड़या सब लोक लाज , साँ......वरो ......... साँ......वरो मोरचन्द्र का किरीट, मुकुट जब सुहाई । केसररो तिलक भाल, लोचन सुखदाई । साँ......व...

मीरा चरित (भाग 6)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (6) क्रमशः से आगे ............. 🌿 महल के परकोटे में लगी फुलवारी के मध्य गिरधर गोपाल के लिए मन्दिर बन कर दो महीनों में तैयार हो गया । धूमधाम से गिरधर गोपाल का गृह प्रवेश और विधिपूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा हुईं । मन्दिर का नाम रखा गया "श्याम कुन्ज"। अब मीरा का अधिकतर समय श्याम कुन्ज में ही बीतने लगा । 🌿 ऐसे ही धीरेधीरे समय बीतने लगा ।मीरा पूजा करने के पश्चात् भी श्याम कुन्ज में ही बैठे बैठे.......... सुनी और पढ़ी हुई लीलाओं के चिन्तन में प्रायः खो जाती । 🌿 वर्षा के दिन थे ।चारों ओर हरितिमा छायी हुई थीं ।ऊपर गगन में मेघ उमड़ घुमड़ कर आ रहे थे । आँखें मूँदे हुये मीरा गिरधर के सम्मुख बैठी है । बंद नयनों के समक्ष उमड़ती हुई यमुना के तट पर मीरा हाथ से भरी हुई मटकी को थामें बैठी है । यमुना के जल में श्याम सुंदर की परछाई देख वह पलक झपकाना भूल गई ।यह रूप -ये कारे कजरारे दीर्घ नेत्र .......... ।  🌿 मटकी  हाथ से छूट गई और उसके साथ न जाने वह भी कैसे जल में जा गिरी । उसे लगा कोई जल में कूद गया और फिर दो सशक्त भुजाओं ने उसे ऊपर उठा लिया और घाट की...

मीरा चरित (भाग 5)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (5) क्रमशः से आगे....... एक दिन मीरा अपने गिरधर की पूजा से निवृत्त हो माँ के पास बैठी थीं तो अचानक बाहर से आने वाले संगीत से उसका ध्यान बंट गया । वह झट से बाहर झरोखे से देखने लगी । भाबू! यह इतने लोग सज धज करके गाजे बाजे के साथ कहाँ जा रहे है ? यह तो बारात आई है बेटा ! यह उत्तर देते माँ की आँखों में सौ सौ सपने तैर उठे । बारात क्या होती है भाबू! यह इतने गहने पहन कर हाथी पर कौन बैठा है ? यह तो बींद (दूल्हा ) है बेटी ।बहू को ब्याहने जा रहा है ।अपने नगर सेठ जी की बेटी से विवाह होगा ।माँ ने दूल्हे की तरफ देखते हुये कहा । सभी बेटियों के वर होते है क्या ? सभी से ब्याह करने बींद आते है ? मीरा ने पूछा ।  हाँ बेटा ! बेटियों को तो ब्याहना ही पड़ता है ।बेटी बाप के घर में नहीं खटती ।चलो, अब नीचे चले ।माँ ने मीरा को झरोखे से उतारने का उपक्रम किया । मीरा ने अपनी ही धुन में मग्न कहा ," तो मेरा बींद कहाँ है भाबू ?" "तेरा वर"? माँ हँस पड़ी ।" मैं कैसे जानूँ बेटी कि तेरा वर कहाँ है , जहाँ के विधाता ने लेख लिखे होंगे , वहीं जाना पड़ेगा । ...

मीरा चरित (भाग 4)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (4) क्रमशः से आगे .......... मीरा के यूँ अचेत होने से माँ कुछ व्याकुल सी हो गई और उन्होंने अपनी चिन्ता व्यक्त करते हुए सब बात रतन सिंह जी को बताई । वीर कुंवरी चाहती थी कि मीरा महल में और राजकुमारियों की तरह शस्त्राभ्यास , राजनीति , घुड़सवारी और घर गृहस्थी के कार्य सीखे ताकि वह ससुराल में जा कर प्रत्येक परिस्थिति का सामना कर सके । पर इधर दूदा जी के संरक्षण में मीरा ने योग और संगीत की शिक्षा प्रारम्भ कर दी । मीरा का झुकाव ठाकुर पूजा में दिन प्रतिदिन बढ़ता देख माँ को स्वाभाविक चिन्ता होती । मीरा को पूजा और शिक्षा के बाद जितना अवकाश मिलता वह दूदाजी के साथ बैठ श्री गदाधर जोशी जी से श्रीमद् भागवत कथा सुनती ।आने वाले प्रत्येक संत का सत्संग लाभ लेती ।उसके भक्तियुक्त प्रश्नों को सुनकर सब मीरा की प्रतिभा से आश्चर्यचकित हो जाते । माँ को मीरा का यूँ संतो से बात करना उनके समक्ष भजन गाना बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था पर दूदाजी जी की लाडली मीरा को कुछ कहते भी नहीं बनता था । दूदाजी की छत्रछाया में मीरा की भक्ति बढ़ने लगी ।वृंदावन से पधारे बाबा बिहारीदास जी से म...

मीरा चरित (भाग 3)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (3) क्रमशः से आगे....... 🔺कृपण के धन की भाँति मीरा ठाकुर जी को अपने से चिपकाये माँ के कक्ष में आ गई ।वहाँ एक झरोखे में लकड़ी की चौकी रख उस पर अपनी नई ओढ़नी बिछा ठाकुर जी को विराजमान कर दिया ।थोड़ी दूर बैठ उन्हें निहारने लगी ।रह रह कर आँखों से आँसू झरने लगे । 🔸आज की इस उपलब्धि के आगे सारा जगत तुच्छ हो गया ।जो अब तक अपने थे वे सब पराये हो गये और आज आया हुआ यह मुस्कुराता हुआ चेहरा ऐसा अपना हुआ जैसा अब तक कोई न था ।सारी हंसी खुशी और खेल तमाशे सब कुछ इन पर न्यौछावर हो गया ।ह्रदय में मानों उत्साह उफन पड़ा कि ऐसा क्या करूँ, जिससे यह प्रसन्न हो । 🔺अहा, कैसे देख रहा है मेरी ओर ? अरे मुझसे भूल हो गई ।तुम तो भगवान हो और मैं आपसे तू तुम कर बात कर गई ।आप कितने अच्छे हैं जो स्वयं कृपा कर उस संत से मेरे पास चले आये ।मुझसे कोई भूल हो जाये तो आप रूठना नहीं , बस बता देना ।अच्छा बताओ उन महात्मा की याद तो नहीं आ रही वह तो तुम्हें मुझे देते रो ही पड़े थे । मैं तुम्हें अच्छे से रखूँगी- स्नान करवाऊँगी, सुलाऊँगी और ऐसे सजाऊँगी कि सब देखते ही रह जायेंगे ।मैं बाबोसा को...

मीरा चरित (भाग 2)

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|| श्रीकृष्ण || || मीरा चरित || (2) क्रमशः से आगे.... 🔻दूसरे दिन प्रातःकाल मीरा उन संत के निवास पर ठाकुर जी के दर्शन हेतु जा पहुँची ।मीरा प्रणाम करके एक तरफ बैठ गई ।संत ने पूजा समापन कर मीरा को प्रसाद देते हुए कहा," बेटी , तुम ठाकुर जी को पाना चाहती हो न!" 🔸मीरा: बाबा, किन्तु यह तो आपकी साधना के साध्य है (मीरा ने कांपते स्वर में कहा) । 🔻बाबा : अब ये तुम्हारे पास रहना चाहते है- तुम्हारी साधना के साध्य बनकर , ऐसा मुझे इन्होने कल रात स्वप्न में कहा कि अब मुझे मीरा को दे दो ।( कहते कहते बाबा के नेत्र भर आये) ।इनके सामने किसकी चले ? 🔸मीरा: क्या सच? ( आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता से बोली जैसे उसे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ ।) 🔻बाबा: (भरे कण्ठ से बोले ) हाँ ।पूजा तो तुमने देख ही ली है ।पूजा भी क्या - अपनी ही तरह नहलाना- धुलाना, वस्त्र पहनाना और श्रंगार करना , खिलाना -पिलाना ।केवल आरती और lधूप विशेष है । 🔸मीरा: किन्तु वे मन्त्र , जो आप बोलते है, वे तो मुझे नहीं आते । 🔻बाबा :मन्त्रों की आवश्यकता नहीं है बेटी। ये मन्त्रो के वश में नहीं रहते। ये तो मन की भाषा समझत...