मीरा चरित (भाग 8 से 13 तक)

|| श्रीकृष्ण ||
|| मीरा चरित ||
(8)
क्रमशः से आगे ........

🌿 मीरा की भक्ति और भजन में बढ़ती रूचि देखकर रनिवास में चिन्ता व्याप्त होने लगी । एक दिन वीरमदेव जी (मीरा के सबसे बड़े काका ) को उनकी पत्नी श्री गिरिजा जी ने कहा ," मीरा दस वर्ष की हो गई है ,इसकी सगाई - सम्बन्ध की चिन्ता नहीं करते आप ? "

वीरमदेव जी बोले ," चिन्ता तो होती है पर मीरा का व्यक्तित्व , प्रतिभा और रूचि असधारण है , फिर बाबोसा मीरा के ब्याह के बारे में कैसा सोचते है, पूछना पड़ेगा ।"

🌿 " ,बेटी की रूचि साधारण हो याँ असधारण - पर विवाह तो करना ही पड़ेगा " बड़ी माँ ने कहा ।
" पर मीरा के योग्य कोई पात्र ध्यान में हो तो ही मैं अन्नदाता हुक्म से बात करूँ ।"

🌿" एक पात्र तो मेरे ध्यान में है ।मेवाड़ के महाराज कुँवर और मेरे भतीजे भोजराज।"
"क्या कहती हो , हँसी तो नहीं कर रही ? अगर ऐसा हो जाये तो हमारी बेटी के भाग्य खुल जाये ।वैसे मीरा है भी उसी घर के योग्य ।" प्रसन्न हो वीरमदेव जी ने कहा ।
गिरिजा जी ने अपनी तरफ़ से पूर्ण प्रयत्न करने का आश्वासन दिया ।

🌿 मीरा की सगाई की बात मेवाड़ के महाराज कुंवर से होने की चर्चा रनिवास में चलने लगी । मीरा ने भी सुना । वह पत्थर की मूर्ति की तरह स्थिर हो गई थोड़ी देर तक । वह सोचने लगी -माँ ने ही बताया था कि तेरा वर गिरधर गोपाल है-और अब माँ ही मेवाड़ के राजकुमार के नाम से इतनी प्रसन्न है , तब किससे पूछुँ ? " वह धीमे कदमों से दूदाजी के महल की ओर चल पड़ी ।

🌿 पलंग पर बैठे दूदाजी जप कर रहे थे ।मीरा को यूँ अप्रसन्न सा देख बोले ," क्या बात है बेटा ?"
" बाबोसा ! एक बेटी के कितने बींद होते है ?"

🌿 दूदाजी ने स्नेह से मीरा के सिर पर हाथ रखा और हँस कर बोले ," क्यों पूछती हो बेटी ! वैसे एक बेटी के एक ही बींद होता है ।एक बींद के बहुत सी बीनणियाँ तो हो सकती है पर किसी भी तरह एक कन्या के एक से अधिक वर नहीं होते ।पर क्यों ऐसा पूछ रही हो ?"

🌿" बाबोसा ! एक दिन मैंने बारात देख माँ से पूछा था कि मेरा बींद कौन है ? उन्होंने कहा कि तेरा बींद गिरधर गोपाल है । और आज...... आज...... ।" उसने हिलकियों के साथ रोते हुए अपनी बात पूरी करते हुये कहा"-" आज भीतर सब मुझे मेवाड़ के राजकुवंर को ब्याहने की बात कर रहे है ।"

दूदाजी ने अपनी लाडली को चुप कराते हुए कहा-" तूने भाबू से पूछा नहीं ? "

🌿 " पूछा ! तो वह कहती है कि-" वह तो तुझे बहलाने के लिए कहा था । पीतल की मूरत भी कभी किसी का पति होती है ? अरी बड़ी माँ के पैर पूज । यदि मेवाड़ की राजरानी बन गई तो भाग्य खुल गया समझ । आप ही बताईये बाबोसा ! मेरे गिरधर क्या केवल पीतल की मूरत है ? संत ने कहा था न कि यह विग्रह (मूर्ति) भगवान की प्रतीक है । प्रतीक वैसे ही तो नहीं बन जाता ? कोई हो , तो ही उसका प्रतीक बनाया जा सकता है ।जैसे आपका चित्र कागज़ भले हो , पर उसे कोई भी देखते ही कह देगा कि यह दूदाजी राठौड़ है । आप है , तभी तो आपका चित्र बना है ।यदि गिरधर नहीं है तो फिर उनका प्रतीक कैसा ?"

🌿 " भाबू कहती है-"भगवान को किसने देखा है ? कहाँ है ? कैसे है ? मैं कहती हूँ बाबोसा वो कहीं भी हों , कैसे भी हो , पर हैं , तभी तो मूरत बनी है , चित्र बनते है ।ये शास्त्र , ये संत सब झूठे है क्या ? इतनी बड़ी उम्र में आप क्यों राज्य का भार बड़े कुंवरसा पर छोड़कर माला फेरते है ? क्यों मन्दिर पधारते है ? क्यों सत्संग करते है ? क्यों लोग अपने प्रियजनों को छोड़ कर उनको पाने के लिए साधु हो जाते है ? बताईये न बाबोसा -" मीरा ने रोते रोते कहा ।

क्रमशः ........

|| मीरा चरित ||

(9)
क्रमशः से आगे.........

🌿 राव दूदाजी अपनी दस वर्ष की पौत्री मीरा की बातें सुनकर चकित रह गये ।कुछ क्षण तो उनसे कुछ बोला नहीं गया ।
"आप कुछ तो कहिये बाबोसा ! मेरा जी घबराता है ।किससे पूछुँ यह सब ? भाबू ने पहले मुझे क्यों कहा कि गिरधर ही मेरे वर है और अब स्वयं ही अपने कहे पर पानी फेर रही है ? जो हो ही नहीं सकता , उसका क्या उपाय ? आप ही बताईये क्या तीनों लोको के धणी (स्वामी) से भी बड़ा मेवाड़ का राजकुमार है ? और यदि है तो होने दो , मुझे नहीं चाहिए ।"

🌿 "तू रो मत बेटा ! धैर्य धर !उन्होने दुपट्टे के छोर से मीरा का मुँह पौंछा -तू चिन्ता मत कर ।मैं सबको कह दूँगा कि मेरे जीते जी मीरा का विवाह नहीं होगा ।तेरे वर गिरधर गोपाल हैं और वही रहेंगे , किन्तु मेरी लाड़ली ! मैं बूढ़ा हूँ । कै दिन का मेहमान ? मेरे मरने के पश्चात यदि ये लोग तेरा ब्याह कर दें तो तू घबराना मत । सच्चा पति तो मन का ही होता है । तन का पति भले कोई बने , मन का पति ही पति है । गिरधर तो प्राणी मात्र का धणी है , अन्तर्यामी है उनसे तेरे मन की बात छिपी तो नहीं है बेटा । तू निश्चिंत रह ।"

"सच फरमा रहे है , बाबोसा ?"
" सर्व साँची बेटा ।"

🌿 " तो फिर मुझे तन का पति नहीं चाहिए ।मन का पति ही पर्याप्त है ।"दूदाजी से आश्वासन पाकर मीरा के मन को राहत मिली ।

🌿 दूदाजी के महल से मीरा सीधे श्याम कुन्ज की ओर चली ।कुछ क्षण अपने प्राणाराध्य गिरधर गोपाल की ओर एकटक देखती रही ।फिर तानपुरा झंकृत होने लगा ।आलाप लेकर वह गाने लगी .........

आओ मनमोहना जी, जोऊँ थाँरी बाट ।
खान पान मोहि नेक न भावे,नैणन लगे कपाट॥
तुम आयाँ बिन सुख नहीं मेरेेेे,दिल में बहुत उचाट ।
मीरा कहे मैं भई रावरी, छाँड़ो नाहिं निराट॥

🌿 भजन पूरा हुआ तो अधीरतापूर्वक नीचे झुक कर दोनों भुजाओं में सिंहासन सहित अपने ह्रदयधन को बाँध चरणों में सिर टेक दिया ।नेत्रों से झरते आँसू उनका अभिषेक करने लगे । ह्रदय पुकार रहा था"आओ सर्वस्व ! इस तुच्छ दासी की आतुर प्रतीक्षा सफल कर दो ।आज तुम्हारी साख और प्रतिष्ठा दाँव पर लगी है । "

🌿 उसे फूट फूट कर रोते देख मिथुला ने धीरज धराया ।कहा कि," प्रभु तो अन्तर्यामी है , आपकी व्यथा इनसे छिपी नहीं है ।"

" मिथुला ,तुम्हें लगता है वे मेरी सुध लेंगे ? वे तो बहुत बड़े ......है ।मेरी क्या गिनती ? मुझ जैसे करोड़ों जन बिलबिलाते रहते है । किन्तु मिथुला ! मेरे तो केवल वही एक अवलम्ब है ।न सुने, न आयें , तब भी मेरा क्या वश है ?" मीरा ने मिथुला की गोद में मुँह छिपा लिया ।

🌿 " पर आप क्यों भूल जाती है बाईसा कि वे भक्तवत्सल है , करूणासागर है , दीनबन्धु है ।भक्त की पीड़ा वे नहीं सह पाते -दौड़े आते है ।"

" किन्तु मैं भक्त कहाँ हूँ मिथुला ? मुझसे भजन बनता ही कहाँ है ? मुझे तो केवल वह अच्छे लगते है ।वे मेरे पति हैं - मैं उनकी हूँ ।वे क्या कभी अपनी इस दासी को अपनायेगें ? उनके तो सोलह हज़ार एक सौ आठ पत्नियाँ है उनके बीच मेरी प्रेम हीन रूखी सूखी पुकार सुन पायेंगे क्या ? तुझे क्या लगता है मिथुला ! वे कभी मेरी ओर देखेंगे भी क्या ?"

मीरा अचेत हो मिथुला की गोद में लुढ़क गई ।"

क्रमशः ........

|| मीरा चरित ||

(10)
क्रमशः से आगे..........

🌿 आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है ।राजमन्दिर में और श्याम कुन्ज में प्रातःकाल से ही उत्सव की तैयारियाँ होने लगी ।मीरा का मन विकल है पर कहीं आश्वासन भी है कि प्रभु आज अवश्य पधारेगें ।बाहर गये हुये लोग , भले ही नौकरी पर गये हो , सभी पुरुष तीज तक घर लौट आते हैं ।फिर आज तो उनका जन्मदिन है । कैसे न आयेंगे भला ? पति के आने पर स्त्रियाँ कितना श्रृगांर करती है -तो मैं क्या ऐसे ही रहूँगी ? तब...... मैं भी क्यों न पहले से ही श्रृगांर धारण कर लूँ ? कौन जाने , कब पधार जावें वे !"

🌿  मीरा ने मंगला से कहा ," जा मेरे लिए उबटन ,सुगंध और श्रृगांर की सब सामग्री ले आ ।" और चम्पा से बोली कि माँ से जाकर सबसे सुंदर काम वाली पोशाक और आभूषण ले आये ।

🌿 सभी को प्रसन्नता हुईं कि मीरा आज श्रृगांर कर रही है । बाबा बिहारी दास जी की इच्छा थी कि आज रात मीरा चारभुजानाथ के यहाँ होने वाले भजन कीर्तन में उनका साथ दें । बाबा की इच्छा जान मीरा असमंजस में पड़ गई ।थोड़े सोचने के बाद बोली -" बाबा रात्रि के प्रथम प्रहर में राजमन्दिर में रह आपकी आज्ञा का पालन करूँगी और फिर अगर आप आज्ञा दें तो मैं जन्म के समय श्याम कुन्ज में आ जाऊँ ?"

"अवश्य बेटी !" उस समय तो तुम्हें श्याम कुन्ज में ही होना चाहिए "बाबा ने मीरा के मन के भावों को समझते हुये कहा ।" मेरी तो यह इच्छा थी कि तुम मेरे साथ एक बार मन्दिर में गाओ । बड़ी होने पर तो तुम महलों में बंद हो जाओगी ।कौन जाने , ऐसा सुयोग फिर कब मिले !"

🌿 मीरा आज नख से शिख तक श्रंगार किये मीरा चारभुजानाथ के मन्दिर में राव दूदाजी और बाबा बिहारी दास जी के बीच तानपुरा लेकर बैठी हुई पदगायन में बाबा का साथ दे रही है । मीरा के रूप सौंदर्य के अतुलनीय भण्डार के द्वार आज श्रृगांर ने उदघाटित कर दिए थे । नवबालवधु के रूप में मीरा को देख कर सभी राजपुरूष के मन में यह विचार स्फुरित होने लगा कि मीरा किसी बहुत गरिमामय घर -वर के योग्य है । वीरमदेव जी भी आज अपनी बेटी का रूप देख चकित रह गये और मन ही मन दृढ़ निश्चय किया कि चित्तौड़ की महारानी का पद ही मीरा के लिए उचित स्थान है ।

🌿 " बेटी ! अब तुम अपने संगीत के द्वारा सेवा करो ।" बाबा बिहारी दास जी ने गर्व से अपनी योग्य शिष्या को कहा ।

मीरा ने उठकर पहले गुरुचरणों में प्रणाम किया ।फिर चारभुजानाथ और दूदाजी आदि बड़ो को प्रणाम कर गायन प्रारम्भ किया ।आलाप की तान ले मीरा ने सम्पूर्ण वातावरण को बाँध दिया........

बसो मेरे नैनन में नन्दलाल ।
मोहिनी मूरत साँवरी सूरत, नैना बने विशाल ।
अधर सुधारस मुरली राजत उर वैजंती माल॥
छुद्र घंटिका कटितट शोभित नूपुर सबद रसाल ।
मीरा प्रभु संतन सुखदायी, भगत बछल गोपाल ॥

🌿 वहाँ उपस्थित सब भक्त जन मीरा के गायन से मन्त्रमुग्ध हो गये । बिहारी दास जी सहित दूदाजी मीरा का वह स्वरचित पद श्रवण कर चकित एवं प्रसन्न हो उठे । दोनों आनन्दित हो गदगद स्वर में बोले - " वाह बेटी !"

मीरा ने संकोच वश अपने नेत्र झुका लिये ।बाबा ने उमंग से मीरा से एक और भजन गाने का आग्रह किया तो उसने फिर से तानपुरा उठाया ।अबकि मीरा ने ठाकुर जी की करूणा का बखान करते हुये पद गाया ।

सुण लीजो बिनती मोरी
मैं सरण गही प्रभु तोरी ।
तुम तो पतित अनेक उधारे
भवसागर से तारे ।
.................................
................................
मीरा प्रभु तुम्हरे रंग राती
या जानत सब दुनियाई ॥

🌿 दूदाजी नेत्र मूंद कर एकाग्र होकर श्रवण कर रहे थे ।भजन पूरा होने पर उन्होंने आँखें खोली, प्रशंसा भरी दृष्टि से मीरा की ओर देखा और बोले ," आज मेरा जीवन धन्य हो गया । बेटा , तूने अपने वंश -अपने पिता पितृव्यों को धन्य कर दिया ।" फिर मीरा के सिर पर हाथ रखते हुए अपने वीर पुत्रों को देखते हुये अश्रु विगलित स्वर से बोले ," इनकी प्रचण्ड वीरता और देश प्रेम को कदाचित लोग भूल जायें, पर मीरा तेरी भक्ति और तेरा नाम अमर रहेगा बेटा ......अमर रहेगा । उनकी आँखें 
छलक पड़ी ।

क्रमशः ...................

|| मीरा चरित ||

(11)
क्रमशः से आगे ............

मीरा यूँ तों श्याम कुन्ज में अपने गिरधर को रिझाने के लिये प्रतिदिन ही गाती थी , पर आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन राजमन्दिर में सार्वजनिक रूप से उसने पहली बार ही गायन किया ।सब घर परिवार और बाहर के मीरा की असधारण भक्ति एवं संगीत प्रतिभा देख आश्चर्य चकित हो गये ।

अतिशय भावुक हुये दूदाजी को प्रणाम करते हुए मीरा बोली ," बाबोसा मैं तो आपकी हूँ , जो कुछ है वह तो आपका ही है और रहा संगीत , यह तो बाबा का प्रसाद है ।" मीरा ने बाबा बिहारी दास की ओर देखकर हाथ जोड़े ।

थोड़ा रूक कर वह बोली -" अब मैं जाऊँ बाबा ?"

"जाओ बेटी ! श्री किशोरी जी तुम्हारा मनोरथ सफल करें ।" भरे कण्ठ से बाबा ने आशीर्वाद दिया ।

सभी को प्रणाम कर मीरा अपनी सखियों दासियों के साथ श्याम कुन्ज चल दी । बाबा बिहारी दास जी का आशीर्वाद पाकर वह बहुत प्रसन्न थी , फिर भी रह रह कर उसका मन आशंकित हो उठता था " कौन जाने , प्रभु इस दासी को भूल तो न गये होंगे ? किन्तु नहीं , वे विश्वम्बर है , उनको सबकी खबर है , पहचान है ।आज अवश्य पधारेगें अपनी इस चरणाश्रिता को अपनाने । इसकी बाँह पकड़ कर भवसागर में डूबती हुई को ऊपर उठाकर ............ ।" आगे की कल्पना कर वह आनन्दानुभूति में खो जाती ।

सखियों -दासियों के सहयोग से मीरा ने आज श्याम कुन्ज को फूल मालाओं की बन्दनवार से अत्यंत सजा दिया था । अपने गिरधर गोपाल का बहुत आकर्षक श्रंगार किया । सब कार्य सुंदर रीति से कर मीरा ने तानपुरा उठाया ।

🌿 आय मिलो मोहिं प्रीतम प्यारे ।
हमको छाँड़ भये क्यूँ न्यारे ॥
बहुत दिनों से बाट निहारूँ ।
तेरे ऊपर तन मन वारूँ ॥
तुम दरसन की मो मन माहीं ।
आय मिलो किरपा कर साई ॥
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ।
आय दरस द्यो सुख के सागर ॥🌿

मीरा की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई ।रोते रोते मीरा फिर गाने लगी ।चम्पा ने मृदंग और मिथुला ने मंजीरे संभाल लिए .......

🌿 जोहने गुपाल करूँ ऐसी आवत मन में ।
अवलोकत बारिज वदन बिबस भई तन में ॥
मुरली कर लकुट लेऊँ पीत वसन धारूँ ।
पंखी गोप भेष मुकुट गोधन सँग चारूँ ॥
हम भई गुल काम लता वृन्दावन रैना ।
पसु पंछी मरकट मुनि श्रवण सुनत बैना ॥
गुरूजन कठिन कानिं कासों री कहिये ।
मीरा प्रभु गिरधर मिली ऐसे ही रहिये ॥ 🌿

गान विश्रमित हुआ तो मीरा की निमीलित पलकों तले लीला - सृष्टि विस्तार पाने लगी - वह गोप सखा के वेश में आँखों पर पट्टी बाँधे श्याम सुंदर को ढूँढ रही है । उसके हाथ में ठाकुर को ढूँढते ढूँढते कभी तो वृक्ष का तना , कभी झाड़ी के पत्ते और कभी गाय का मुख आ जाता है । वह थक गयी ,व्याकुल हो पुकार उठी -" कहाँ हो "गोविन्द ! आह , मैं ढूँढ नहीं पा रही हूँ । श्याम सुन्दर ! कहाँ हो..........कहाँ हो.......कहाँ हो.....? "

क्रमशः .............

||मीरा चरित||

(12)
क्रमशः से आगे .........

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का समय है । मीरा श्याम कुन्ज में ठाकुर के आने की प्रतीक्षा में गायन कर रही है ।उसे लीला अनुभूति हुई कि वह गोप सखा वेश में आँखों पर पट्टी बाँधे श्यामसुन्दर को ढूँढ रही है ।

तभी गढ़ पर से तोप छूटी । चारभुजानाथ के मन्दिर के नगारे , शंख , शहनाई एक साथ बज उठे ।समवेत स्वरों में उठती जय ध्वनि ने दिशाओं को गुँजा दिया - " चारभुजानाथ की जय ! गिरिधरण लाल की जय ।"

उसी समय मीरा ने देखा - जैसे सूर्य चन्द्र भूमि पर उतर आये हो , उस महाप्रकाश के मध्य शांत स्निग्ध ज्योति स्वरूप मोर मुकुट पीताम्बर धारण किए सौन्दर्य -सुषमा सागर श्यामसुन्दर खड़े मुस्कुरा रहे हैं ।वे आकर्ण दीर्घ दृग ,उनकी वह ह्रदय को मथ देने वाली दृष्टि , वे कोमल अरूण अधर -पल्लव , बीच में तनिक उठी हुई सुघड़ नासिका , वह स्पृहा -केन्द्र विशाल वक्ष , पीन प्रलम्ब भुजायें ,कर-पल्लव , बिजली सा कौंधता पीताम्बर और नूपुर मण्डित चारू चरण । एक दृष्टि में जो देखा जा सका....... फिर तो दृष्टि तीखी धार -कटार से उन नेत्रों में उलझ कर रह गई । क्या हुआ ? क्या देखा ? कितना समय लगा ? कौन जाने ? समय तो बेचारा प्रभु और उनके प्रेमियों के मिलन के समय प्राण लेकर भाग छूटता है ।

"इतनी व्याकुलता क्यों , क्या मैं तुमसे कहीं दूर था ?" श्यामसुन्दर ने स्नेहासिक्त स्वर में पूछा ।

मीरा प्रातःकाल तक उसी लीला अनुभूति में ही मूर्छित रही ।सबह मूर्छा टूटने पर उसने देखा कि सखियाँ उसे घेर करके कीर्तन कर रही है । उसने तानपुरा उठाया ।सखियाँ उसे सचेत हुई जानकार प्रसन्न हुई ।कीर्तन बन्द करके वे मीरा का भजन सुनने लगी ....

🌿 म्हाँरा ओलगिया घर आया जी ।
तन की ताप मिटी सुख पाया , 
हिलमिल मंगल गाया जी ॥

🌿 घन की धुनि सुनि मोर मगन भया,
यूँ मेरे आनन्द छाया जी ।
मगन भई मिल प्रभु अपणा सूँ , 
भौं का दरद मिटाया जी ॥

🌿 चंद को निरख कुमुदणि फूलै ,
हरिख भई मेरी काया जी ।
रगरग सीतल भई मेरी सजनी ,
हरि मेरे महल सिधाया जी ॥

🌿 सब भक्तन का कारज कीन्हा ,
सोई प्रभु मैं पाया जी ।
मीरा बिरहणि सीतल भई ,
दुख द्वदं दूर नसाया जी ॥
म्हाँरा ओलगिया घर आयाजी ॥🌿

इस प्रकार आनन्द ही आनन्द में अरूणोदय हो गया । दासियाँ उठकर उसे नित्यकर्म के लिए ले चली ।

क्रमशः ............

|| मीरा चरित ||

(13)
क्रमशः से आगे ............

श्री कृष्ण जनमोत्सव सम्पन्न होने के पश्चात बाबा बिहारी दास जी ने वृन्दावन जाने की इच्छा प्रकट की । भारी मन से दूदाजी ने स्वीकृति दी । मीरा को जब मिथुला ने बाबा के जाने के बारे में बताया तो उसका मन उदास हो गया । वह बाबा के कक्ष में जाकर उनके चरणों में प्रणाम कर रोते रोते बोली ," बाबा आप पधार रहें है ।"

" हाँ बेटी ! वृद्ध हुआ अब तेरा यह बाबा ।अंतिम समय तक वृन्दावन में श्री राधामाधव के चरणों में ही रहना चाहता हूँ ।"
"बाबा ! मुझे यहाँ कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।मुझे भी अपने साथ वृन्दावन ले चलिए न बाबा ।" मीरा ने दोनों हाथों से मुँह ढाँपकर सुबकते हुए कहा ।
"श्री राधे! श्री राधे! बिहारी दास जी कुछ बोल नहीं पाये । उनकी आँखों से भी अश्रुपात होने लगा । कुछ देर पश्चात उन्होंने मीरा के सिर पर हाथ फेरते हुये कहा ," हम सब स्वतन्त्र नहीं है पुत्री । वे जब जैसा रखना चाहे...... उनकी इच्छा में ही प्रसन्न रहे । भगवत्प्रेरणा से ही मैं इधर आया । सोचा भी नहीं था कि शिष्या के रूप में तुम जैसा रत्न पा जाऊँगा । तुम्हारी शिक्षा में तो मैं निमित्त मात्र रहा । तुम्हारी बुद्धि , श्रद्धा ,लग्न और भक्ति ने मुझे सदा ही आश्चर्य चकित किया है । तुम्हारी सरलता , भोलापन और विनय ने ह्रदय के वात्सल्य पर एकाधिपत्य स्थापित कर लिया । राव दूदाजी के प्रेम , विनय और संत -सेवा के भाव इन सबने मुझ विरक्त को भी इतने दिन बाँध रखा । किन्तु बेटा ! जाना तो होगा ही ।"

" बाबा ! मैं क्या करूँ ? मुझे आप आशीर्वाद दीजिये कि.......... ।मीरा की रोते रोते हिचकी बँध गई..........," मुझे भक्ति प्राप्त हो, अनुराग प्राप्त हो , श्यामसुन्दर मुझ पर प्रसन्न हो ।"उसने बाबा के चरण पकड़ लिए ।

बाबा कुछ बोल नहीं पाये, बस उनकी आँखों से झर झर आँसू चरणों पर पड़ी मीरा को सिक्त करते रहे । फिर भरे कण्ठ से बोले," श्री किशोरी जी और श्यरश्यामसुन्दर तुम्हारी मनोकामना पूर्ण करे । पर मैं एक तरफ जब तुम्हारी भाव भक्ति और दूसरी ओर समाज के बँधनों का विचार करता हूँ तो मेरे प्राण व्याकुल हो उठते है । बस प्रार्थना करता हूं कि तुम्हारा मंगल हो । चिन्ता न करो पुत्री ! तुम्हारे तो रक्षक स्वयं गिरधर है ।"

अगले दिन जब बाबा श्याम कुन्ज में ठाकुर को प्रणाम करने आये तो मीरा और बाबा की झरती आँखों ने वहाँ उपस्थित सब जन को रूला दिया ।
मीरा अश्रुओं से भीगी वाणी में बोली ," आप वृन्दावन जा रहे हैं बाबा ! मेरा एक संदेश ले जायेंगे ?"
"बोलो बेटी ! तुम्हारा संदेश - वाहक बनकर तो मैं भी कृतार्थ हो जाऊँगा ।"
मीरा ने कक्ष में दृष्टि डाली । दासियों - सखियों के अतिरिक्त दूदाजी व रायसल काका भी थे । लाज के मारे क्या कहती । शीघ्रता से कागज़ कलम ले लिखने लगी । ह्रदय के भाव तरंगों की भांति उमड़ आने लगे ; आँसुओं से दृष्टि धुँधला जाती । वह ओढ़नी से आँसू पौंछ फिर लिखने लगती । लिख कर उसने मन ही मन पढ़ा ..........

🌿 गोविन्द.........
गोविन्द कबहुँ मिलै पिया मेरा ।

🌿 चरण कँवल को हँस हँस देखूँ ,
राखूँ नैणा नेरा ।
निरखन का मोहि चाव घणेरौ ,
कब देखूँ मुख तेरा ॥

🌿 व्याकुल प्राण धरत नहीं धीरज,
मिल तू मीत सवेरा ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर ,
ताप तपन बहु तेरा ॥ 🌿

पत्र को समेट कर और सुन्दर रेशमी थैली में रखकर मीरा ने पूर्ण विश्वास से उसे बाबा की ओर बढ़ा दिया । बाबा ने उसे लेकर सिर चढ़ाया और फिर उतने ही विश्वास से गोविन्द को देने के लिए अपने झोले में सहेज कर रख लिया ।गिरधर को सबने प्रणाम किया । मीरा ने पुनः प्रणाम किया ।
बिहारी दास जी के जाने से ऐसा लगा , जैसे गुरु , मित्र और सलाहकार खो गया हो ।

क्रमशः ................


✍🏽 WhatsApp या Facebook पर मीरा चरित का यह जो प्रसंग आता है,  भाग 1 से लेकर भाग 123 तक, यह संक्षेप में है। जो मुख्य रूप से पुस्तक से लेकर लिखा गया है। लेकिन पुस्तक में और विस्तार से लिखा हुआ है और भी बहुत सारे प्रसंग पुस्तक में आपको मिलेंगे, जो कि बहुत ही रोचक है, भावुक कर देने वाला प्रसंग पुस्तक में आपको मिलेंगे। इसलिए निवेदन है कि मीरा चरित पुस्तक जरूर पढ़ें। और यदि आप  पुस्तक मंगवाना चाहते हैं तो आप इस पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।


श्री राधे...

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